जसवंतनगर: पत्रकारों ने किया रामेश्वरम मंदिर पर शिव का जलाभिषेक।
एमएस वर्मा

शिव को यूँ ही नहीं शिव कहा जाता है शिव जो सबका है वही तो शिव है.
भक्त की आर्त पुकार सुनकर जो दौड़े चले जाते है. वे है भोले नाथ. और गले मेँ गरल धारण कर लेते है तो नील कंठ है.
शीघ्र ही प्रसन्न हो उठते है तो बो आशुतोष है और सर्पौ के स्वामी है तो नागनाथ है. मस्तक पर गंगा है तो गंगाधर है. और काल से परे है तो काल भैरव मृत्युजय है.
संगीत के आदि गुरु हैं डमरू बाले और ब्रह्माड का अनहद नाद भी है. और भी बहुत कुछ है शिव. परन्तु भक्त के चाकर भी है शिव महादेव. भोलेनाथ की साधना का मास है सावन मास तो प्राशांगिक हो जाती है उमा नाथ की कथा. जो एक अंचल मेँ तो घर घर कहीं जाती है. लेकिन बहुत लोग उनके वारे मेँ नहीं जानते.
देखो भोलेनाथ कब कहां किस पर प्रसन्न हो जाए ये कहा नहीं जा सकता
उनको प्रसन्न करने के लिये भूखे रहना, या हजारों किलोमीटर पैदल यात्रा करना ये सब जरूरी नहीं है. शिब तो केवल भाव के भूखे है. ऐसी ही एक कथा का वर्णन करना अब अनिवार्य हो गया है.
कहाँनी देश के सम्मानित कवि मेथीली विद्यापती की है. विद्यापती भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे. उन्होंने उन पर अनेक रचनाये लिखी.
भगवान शिव उनकी लिखी रचनाओं से इतने प्रभावित हो गये कि उनके साथ ही रहने को तैयार हो गये.
एक दिन शिव जी भोलेनाथ अपना रूप बदलकर मेथीली कवि के घर पर आ गये और आकर उनसे नौकरी मांगी विद्यापती इतने पैसे बाले भी नहीं थे कि किसी नौकर को रख सकते तो उन्होंने तुरंत ही मना कर दिया. परन्तु उसकी बहुत अनुनय विनय के वाद केवल दोनों टाइम के भोजन पर बात बन गईं. विद्यापती ने उसका नाम पूंछा तो उस नौकर ने अपना नाम उगना बताया. जैसे शवरी का प्रेम अनूठा वैसे ही उगना की चाकरी. भोलेनाथ ऐसे ही सर्वपूज्य नहीं हो गये. कवि श्रेष्ठ की चाकरी मेँ उन्होंने अपने को झोंक दिया.. सेवक सेवा करता और कवि अपना लेखन,सेवक इतना निहाल कि कवि के इतना निकट है.
कैसा सुंदर देश है हमारा और कैसी है उसकी कथाये.जो देवाधीदेव है वही आज भक्त के घर नौकर है.
कुछ समयवाद कवि नौकर को साथ लेकर देशटन को निकले, मार्ग मेँ पानी खत्म हुआ तो कवि ने नौकर उगना से कहा कि जल की व्यवस्था करो. हमको बहुत जोर की प्यास लग रही है. पानी कहीं दूर दूर भी दिखाई नहीं दे रहा था. तो सेवक ने थोड़ी दूर जाकर शीश की जटा खोल लोटे मेँ गंगा जल भर लिया.और लौटकर लोटा मालिक को थमा दिया. विद्यापति ने जल पिया तो तुरंत जान गये कि ये कोई साधारण जल नहीं है. तो कवि उगना नौकर के पीछे पड़ गये कि तुम कौन हो तुम अपना असली परिचय दो. क्योंकि जो तुम दिखते हो वो तुम हो नहीं. तुम कौन हो. अब लाचार सेवक अपने वास्तविक रूप मेँ आया. अपने सामने साक्षत महादेव को देखकर विधापति सकते मेँ. विद्यापती को यह दुःख कि हमने जगतपति से चाकरी करवाई. तब शिव ने कहा कि हम उगना ही बनकर आपके साथ रहेंगे. पर अब शर्त ये है कि उनका सच किसी को भी बताएंगे नहीं और बताया तो चले जायेगे. विद्यापती ने हामी भरी और तब स्वामी और सेवक की यह अनाखी जोड़ी घर आकर पहले की तरह रहने लगी.
उधर होनी कुछ और चाहती थी एक दिन कवि की पत्नी उगना पर इतनी कुपित हुई कि चूल्हे की जलती लकड़ी से नौकर की पिटाई करने लगी.
जब कवि ने ये सब देखा तो उनके मुँह से ये अनायास ही निकला, अरे ये क्या कर रही हो जिसको तुम पीट रही हो वह साक्षात महादेव है. इतना सुनते ही भोलेबाबा अंतरध्यान . कवि को भूल का भान हुआ तो वही जंगल जंगल दौड़े रोते जाएँ और शिव कविता पढ़ते जाएँ. बाबा को दया आई वही प्रकट हुये और बोले अच्छा में यही रह जाता हूँ. उसके वाद उनका स्वयं भू शिवलिंग पैदा हुआ और तब विहार के मधुवनी जिले के भवानी पुर गाँब मेँ उगना महादेव मंदिर बनाकितनी गहराई और व्यापकता है इस कथा मेँ और लोक ने अपनी संस्कृति को कहाँनी और कथा मेँ सजेहा है.
कैसा तो विम्ब है यह और कैसा तो महाआत्म है महादेव का
हमारी सनातन संस्कृति विश्व मेँ यूँ ही महान नहीं है. हमारे मंदिर चमत्कारों से भरे पड़े है
ऐसा ही कुछ इतिहास इस प्रचीन मंदिर के साथ भी जुड़ा हुआ है.
इतिहास और चमत्कार आगे के लेख मेँ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
इन्तजार करें ????????लेखक एम एस वर्मा इटावा ????????????
सोशल मीडिया प्रभारी: एमएस वर्मा(6397329270)